ब्यूरो रिर्पोट, सद्भावना आवाज़
बलरामपुर।
नए संसद भवन के बारे में मीडिया को जानकारी देने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की। 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन होगा। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्पीकर की सीट के पास सेंगोल नामक एक ऐतिहासिक स्वर्ण राजदंड स्थापित करेंगे। शाह ने प्रेस वार्ता में सेंगोल की विरासत और इतिहास के बारे में बताया। अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण को चिह्नित करने के लिए इसे देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंप दिया गया था। अमित शाह ने कहा कि नेहरू ने तमिलनाडु से सेंगोल प्राप्त किया और इसे पारंपरिक तरीके से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में अंग्रेजों से स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि इसे इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा गया था और इसे नए संसद भवन में ले जाया जाएगा।
1947 में सत्ता के हस्तांतरण हेतु नेहरु जी ने सी राजगोपालाचारी जिंहे राजा जी के नाम से भी जाना जाता था उनसे राय मांगा जिसपर उंहोंने काफी सोच विचार और अनुसंधान करने के बाद भारत की प्राचीनतम सामराज्यों में से एक तमिल नाडू के चोला सामराज्य में सत्ता हस्तांतरण के रुप में प्रयोग होने वाली सेंगोल के बारे में उंहे बताया। सेंगोल शब्द संस्कृत शब्द “शंकु” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “शंख”। शंख हिंदू धर्म में एक पवित्र वस्तु है और अक्सर इसे संप्रभुता के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। सेंगोल राजदंड एक भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक था। यह सोने या चांदी से बना था, और अक्सर कीमती पत्थरों से सजाया गया था। सेंगोल राजदंड औपचारिक अवसरों पर सम्राटों द्वारा ले जाया जाता था, और उनके अधिकार का प्रतिनिधित्व करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। एक चोला सम्राट से दूसरे चोला सम्राट को सत्ता का हस्तांतरण नीतिपरायणता के प्रतीक अर्थात सेंगोल सौंपकर किया जाता था। सेंगोल के शीर्ष पर नंदी विराजमान हैं जो शक्ति, सत्य और न्याय के प्रतीक हैं। यह एक गोल लंबाकार वस्तु थी जिसे चांदी से बनाकर सोने की परत चढ़ाई गई थी।
भारत में सेंगोल राजदंड का इतिहास प्राचीन काल में देखा जा सकता है। सेनगोल राजदंड का पहला ज्ञात उपयोग मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व) द्वारा किया गया था। मौर्य सम्राटों ने अपने विशाल साम्राज्य पर अपने अधिकार को दर्शाने के लिए सेनगोल राजदंड का इस्तेमाल किया। गुप्त साम्राज्य (320-550 ईस्वी), चोल साम्राज्य (907-1310 ईस्वी) और विजयनगर साम्राज्य (1336-1646 ईस्वी) द्वारा सेनगोल राजदंड का भी इस्तेमाल किया गया था। सेंगोल राजदंड आखिरी बार मुगल साम्राज्य (1526-1857) द्वारा इस्तेमाल किया गया था। मुगल बादशाहों ने अपने विशाल साम्राज्य पर अपने अधिकार को दर्शाने के लिए सेनगोल राजदंड का इस्तेमाल किया। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (1600-1858) द्वारा भारत पर अपने अधिकार के प्रतीक के रूप में सेनगोल राजदंड का भी उपयोग किया गया था।
