दीपक मिश्रा
अभिव्यक्ति
मैं आज के दौर का महान युवा हूँ। मेरी एक पूरी की पूरी जमात है। मैं पूरे भारत में ऐसे फैला हुआ हूँ जैसे 2019 के प्रारंभ से लेकर 2021 के उत्तरार्द्ध तक कोविड वायरस भारत में फैला रहा था। मुझे हर जगह देखा जा सकता है। अगर गिनती हो तो मैं भारत के 65% हिस्से पर क़ाबिज़ देखा जाऊंगा। मैं बेहद समझदार, प्रखर, तेज़ और तर्रार हूँ। मैं गुमटी और चौराहों से लेकर विश्वविद्यालयों तक फैला हूँ। मेरी कई तरह की लेबलिंग भी हैं जिनमें से सबसे ऊपर और सबसे बड़ी वाली, “धर्म-जाति”, ये दो सी दिखने वाली पर एक है। इसी क्रम में 2012 आते-आते मुझे इस बात का बेहद गहराई से एहसास हुआ / कराया गया कि मेरे बहुत बड़े एक हिस्से में मै हिन्दू हूँ और एक उससे छोटे हिस्से में मैं मुसलमान हूँ।
इस एहसास के बाद मेरा जीवन काफ़ी हद तक परिवर्तित हो चला है। मुझे यह भी एहसास हुआ / कराया गया है कि मेरे ही इन दो हिस्सों में, जो कि सैकड़ों सालों से मेरे लिए एक हैं, ना सिर्फ़ तालमेल का कोई एक भी निशान नदारद है बल्कि भयंकर विरोधाभास भी है। तबसे मैं अपने एक हिस्से से दूसरे और दूसरे से इस पहले को खरोचता, कुरेदता, खींचता, भींचता और लगातार अलग करने की तमाम (ना) जायज़ कोशिशें करता रहता हूँ।
मेरी जमात अलग अलग छोटी छोटी और जमातों में बंटी हुई है। मसलन की कुछ एक पर आपकी ग़ौर-आज़माइश चाहूंगा…
1. मेरी एक जमात महानगरों में देर रात पब-कल्चर में डूबी रहकर मुँह-अंधेरे घर की तरफ़ रूख़ करती है और दूसरी उन्हीं महानगरों में देर रात तक कुर्सी से तशरीफ़ सटाकर मेज पर सिर टिका और पेट की 3/4 भूख चाय और 1/4 को दाल-भात से सेटल करके देर रात किताबों के काले अक्षरों में अपना, अपने घर-बार परिवार और समाज का भविष्य खोजती रहती है… मुझे इस हिस्से में दिलचस्पी नहीं है!
2. मेरी एक जमात सोशल मीडिया की दुनिया में घुसी रहती है, यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसी तमाम डिजिटल दुकानों के आगे काउंटर पर खड़ी रहती है और हर दिन, हर पल यहाँ से तरह तरह के वैचारिक सामान खरीदकर खुद की शॉर्टकट सक्सेस का रास्ता ढालने की (बेबुनियाद) तमाम कोशिशें करती रहती है, और दूसरी इसके बिल्कुल विपरीत इस दुनिया से या तो लगभग अंजान है या इतना जान चुकी है कि इस तरफ़ ज़रा भी रुख नहीं करती… इस दूसरी में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है!
3. मेरा एक हिस्सा क्षेत्र के नेताओं से या उनके लग्गू-भग्गू चमचों से संपर्क साधने की पुरजोर कोशिश में रहता है ताकि वे मेरे इस हिस्से को युवा कार्यकचरा बना दें और आगे की भविष्य का रोडमैप तय होने की शुरुआत हो जाए। दूसरा हिस्सा अपने काम से काम और मतलब से मतलब रखता है। मुझे दूसरे हिस्से में फिलहाल कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि मुझे समझाया जाता है कि देश के लिए कुछ तो करना है और कुछ करना है तो हमें सड़कों पर उतना होगा, भीड़ बनानी होगी, बनाकर बढ़ानी होगी… कुछ ना का सकें तो उल्टी ही सही, ठीक नहीं तो गलत ही सही… लेकिन समूह बनाकर उसको भीड़ की शक्ल देना जरूरी है तभी वह (जो सनातन है और कभी नहीं मिट सकता क्योंकि कभी नहीं मिटा) बचेगा वरना समाप्त हो जाएगा।
4. मेरा एक हिस्सा VPN का अच्छा खासा इस्तेमाल समझता है और इंटरनेट की दुनिया में कई सारे गंदे वेबसाइटों पर सैर लगाता है। वहां जो कुछ मिलता है, दिमाग से लेकर खून की नसों तक खुद में भरता है और फिर कुछ ही पलों में आदम से आदमख़ोर होकर निकल पड़ता है बहन-बेटियों की तलाश में गलियों में… और शिकार करता है। मेरा दूसरा हिस्सा इन सबसे खुद को बचाने की कोशिशें करता रहता है, बेटियों को पूजता है, बहन का सम्मान करता है, माँ में ईश्वर देखता है। मुझे इस हिस्से में दिलचस्पी नहीं है…
मेरे ऐसे तमाम हिस्से हैं… आगे फिर लिखूंगा, कहूंगा…
लेकिन लिखने का क्या, कहने का क्या…
मैं अंधी दौड़ में दौड़ रहा हूँ… मैं लगातार अपने एक हिस्से से दूसरे को हर संभव गलत/और गलत/ बेहद गलत तरीकों से सिर्फ और सिर्फ अलग करने की कोशिश में लगा हुआ हूँ (याकि लगाया जा रहा हूँ)।
मेरा भविष्य क्या है, यह ईश्वर के लिए भी अनबुझा होता जा रहा है…
बीच बीच में मैं जोर जोर से कुछ नारे/स्लोगन्स बोलता रहता हूँ जैसे कि… ख़ैर छोड़िए…
सुन-सुनकर अबतक आपके कान पक चुके होंगे!
ख़ैर… लेखनी ख़त्म करते हुए फिर से एक बार याद दिला देता हूँ कि,
मैं आज के दौर का भारत का महान युवा हूँ!
-दीपक मिश्रा