फिल्म सागरिका चक्रवर्ती नाम की भारतीय और बंगाली मूल की महिला के साथ घटी सत्य घटना पर आधारित है। सागरिका चक्रवर्ती नाम की भारतीय और बंगाली मूल की महिला के साथ घटी सत्य घटना पर आधारित ये फिल्म मातृत्व के मुद्दों को लेकर है। रानी मुखर्जी ने देविका नाम की एक भारतीय और बंगाली मूल की महिला का किरदार निभाया है जो अपने पति (अनिर्वाण भट्टाचार्य) और दो बच्चों के साथ नार्वे के एक शहर में रहती है। पति पत्नी के बीच हल्का सा खिंचाव भी रहता है लेकिन जिंदगी की गाड़ी चल रही है। देविका के दोनों बच्चे छोटे हैं। नार्वे के कानून के मुताबिक हर परिवार को अपने बच्चे की देखभाल करने के लिए वहां के बाल मंत्रालय द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करना होता है। कई ऐसे नियम हैं जो भारतीय परिवेश के रिवाजों के प्रतिकूल पड़ते हैं। जैसे बच्चों को हाथ से खिलाना।नार्वे में बच्चों को हाथ से खिलाना मना है। और ऐसे ही कुछ और नियमों की अनेदेखी की वजह से देविका के बच्चों के वहां का बाल विभाग उठाकर ले जाता है।
अब बच्चों को पाने के लिए देविका संघर्ष करती है। जिस बाल संरक्षण केंद्र में बच्चों को रखा जाता है वो उनको वहां से लेकर स्वीडन जाने की कोशिश करती और पकड़ी जाती है। नार्वे में मुकदमा भी चलता है जिसमें वो हारती है।उसके संघर्ष का सिलसिला चलता रहता है और उसका मूल तर्क ये है कि बच्चे अपनी मां के पास रहकर ही सही ढंग से पल सकते हैं पर नार्वे की सरकार अपने कानून पर जोर देती रहती है।मुकदमा, बल्कि मुकदमें लंबे चलते हैं और भारत की अदालत तक पहुंच जाते है। क्या होगा? बच्चो देविका के पास लौटेंगे या किसी और को लालन पालन के लिए दे दिए जाएंगे ? फिल्म पूरी तरह से रानी मुखर्जी पर केंद्रित है एक भारतीय मां संघर्ष को उन्होंने जिस तरह दिखाया है, वो दिल को छूने वाला है। फिल्म में ये भी उभरता है कि नार्व में बाहरी देशों से आए परिवारों को बच्चों के सरकार के द्वारा चलाए जा रहे केंद्रों में पहुंचाना एक धंधा बन चुका है जिसमें कई तरह के निहित स्वार्थ हैं।