बलरामपुर।
उत्तर प्रदेश वैसे तो कई तीर्थस्थलों का प्रदेश माना जाता है।यहां अयोध्या में भगवान श्री राम ,तो मथुरा में भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली है। इसके साथ ही 51 शक्तिपीठों में से एक मां पाटेश्वरी का दिव्य दरबार भी उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में स्थित है,जहां देश विदेश से लाखो श्रद्धालु हर दिन अपने मन की मुराद लेकर अपने आराध्य के दर्शन को आते हैं।बात अगर जनपद बलरामपुर की हो तो यहां मां पाटेश्वरि के साथ साथ एक और मंदिर है ,जिसको मां बिजलेश्वरी के नाम से जाना जाता है।
मां बिजलेश्वरी का मंदिर बलरामपुर जनपद के पूर्व दिशा की ओर राप्ती नदी के तट पर स्थित है।वह राप्ती नदी जिसे अचिरावती के नाम से भी जाना गया।मां बिजलेश्वरी का यह मंदिर वास्तु कला का एक अनूठा उदाहरण हैं। यहां पर मां की मूर्ति रूप में नहीं अपितु षट्कोण यन्त्र अर्थात् पिंडी के रूप में पूजन होता है।मंदिर के चारों कोनों पर पंचमहायतन की पूजा अर्चना भी मां बिजलेश्वरी के साथ ही होती है ।पंचमहायतन का अर्थ पांच देवताओं से है, जिसमें शिवजी, गणेश जी, सूर्य भगवान, विष्णु भगवान हैं।
मंदिर के प्रवेश द्वार पर पंचमहायतन को प्रणाम करते हुए श्लोक भी अंकित हैं, “श्रीदुर्गाविष्णुशिवसूर्यगणेशेभ्यो नमः”
माना जाता है कि संत बाबा जयराम भारती को मां पाटेश्वरी का दर्शन अकाशिये बिजली के रूप में हुआ था ।बाबा जयराम भारती राप्ती नदी के तट पर एक कुटी बनाकर रहते थे ,प्रतिदिन वह राप्ती नदी में स्नान कर मां पाटेश्वरी शक्तिपीठ दर्शन करने के लिए जाते थे ।उसके उपरांत ही जल ग्रहण करते थे।पर एक दिन एक अनोखा चमत्कार हुआ, जब प्रतिदिन की भांति बाबा जयराम भारती स्नान करने के बाद मां पाटेश्वरी के दर्शन हेतु निकले ,उस समय राप्ती नदी में भीषण बाढ़ आई हुई थी, जिस कारण वे पेटश्वरी मां के दर्शन से वंचित रह गए। किंतु अपना उन्होंने व्रत नहीं तोड़ा, और तब तक जल की एक बूंद भी ग्रहण न करने का निश्चय किया जब तक उनको मां के दर्शन लाभ न प्राप्त हो जाएं।
अपने भक्त की भक्ति और इस कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर मां पाटेश्वरी ने अपने भक्त बाबा जयराम भारती को दर्शन दिया, और उन्होंने उसी स्थान पर उनकी पूजा-अर्चना प्रतिदिन करने के लिए कहा। बाबा जयराम भारती ने मां से पूछा कि यहां किस स्थान पर मैं आपकी पूजा अर्चना करूं तो मां ने स्वप्न में आकर उन्हें बताया जिस स्थान पर बिजली गिरेगी उसी स्थान पर मेरा पूजन अर्चन होना चाहिए। उसी रात एक विशाल बरगद के पेड़ पर बिजली गिरी और पाताल लोक तक चली गई, तब से बाबा जयराम भारती ने उसी स्थान पर मां की पूजा अर्चना प्रारंभ कर दी ।
इसी घटना के बाद इस स्थान का नाम बिजुलीपुर पड़ गया।तात्कालिक बलरामपुर रियासत के महाराजा दिग्विजय प्रताप सिंह जी को इस घटना की जानकारी प्राप्त हुई, और उन्होंने भी स्वप्न में मां के दर्शन किए ,महाराजा बलरामपुर के निर्देश पर उसी स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण प्रारंभ हुआ।बलरामपुर रियासत द्वारा इस मंदिर का निर्माण विक्रमी संवत 1932 (सन 1875) में प्रारम्भ किया गया इसके निर्माण में लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग किया गया है। यह मंदिर अपने आप में एक दिव्य और भव्य धार्मिक स्थल है। इस मंदिर की मान्यता देश और प्रदेश के अलग अलग हिस्सो मे है। कहते हैं की जो भक्त अपनी परेशानी,कष्ट यहां आकर मां बिजलेश्वरी के सामने रखता है,मां उसकी सभी प्रार्थना को स्वीकार कर तुरंत अपने भक्तो का कल्याण करती हैं।