सद्भावना आवाज़
अंकिता त्रिपाठी
बलरामपुर।
बीजेपी ने 51 लोक सभा उम्मीदवार की घोषणा उत्तर प्रदेश में करके अपने पत्ते खोल दिए हैं। अवध क्षेत्र की श्रावस्ती लोक सभा की हॉट सीट में से एक मानी जाती है। साल 2019 की लोक सभा चुनाव हारने के बाद श्रावस्ती सीट जीतने के लिए बीजेपी ने युवा चेहरे पर दांव लगाया है। अब हर किसी की नजर सपा व बसपा के टिकट पर टिकी है। वर्ष 2019 के चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन से बसपा उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी। इस बार सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है। उम्मीदवार को लेकर हो रही चर्चा पर सपा नेतृत्व ने मुहर लगा दी तो मुकाबला काफी रोचक हो जाएगा। लोक सभा चुनाव से पहले सीएम योगी आदित्यनाथ दो दिवसीय दौरे पर अयोध्या, गोंडा में जनसभा करेंगे और बलरामपुर में रात्रि विश्राम करेंगे।
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जातीय समीकरण पर तय करेगा हार और जीत

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार सांसद चुने गए दद्दन मिश्र ने सपा के बाहुबली अतीक अहमद को 85 हजार 913 मतों से पीछे छोड़ा था। बसपा के लालजी वर्मा को चौथा स्थान मिला था। पीस पार्टी के रिजवान जहीर ने कांग्रेस के विनय कुमार पांडेय को भी पीछे छोड़ दिया था। वर्ष 2019 के चुनाव में सपा-बसपा में गठबंधन हुआ, तो यह सीट बसपा के खेमे में चली गई। साल 2024 में बीजेपी ने ब्राह्मण चेहरा उतारा है तो सपा और बसपा अगर मुस्लिम उम्मीदवार बनाती हैं तो बीजेपी को लाभ मिलेगा। अगर सपा-बसपा अन्य जाति का उम्मीदवार घोषित करती तो चुनाव जातीय समीकरण में रोचक हो जाएगा।
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2019 में फेल हो गया था जातीय समीकरण

वर्तमान सांसद राम शिरोमणि वर्मा बसपा से हैं। संगठन के जनाधार के अलावा सजातीय मतों पर इनकी भी अच्छी पकड़ है। बसपा से दूसरी बार टिकट के प्रबल दावेदार भी हैं। ऐसे में बसपा का टिकट भी लोकसभा चुनाव में काफी कुछ तय करेगा। जिले के चौक-चौराहों पर इन दिनों यही बातें जन चर्चा में हैं। हर किसी की नजर सपा व बसपा के टिकट पर टिकी है। वहीं भाजपा ने बहराइच के पूर्व सांसद पंडित बदलूराम शुक्ल के नाती एमएलसी साकेत मिश्र को उम्मीदवार घोषित किया है। ब्राह्मण बहुल मानी जाने वाली इस सीट से भाजपा ने सटीक दांव चला है, लेकिन चर्चा है कि सपा भी अपने तरकश से मजबूत तीर निकालने की तैयारी में है।
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गठन के बाद से अब तक रहे सांसद

परिसीमन के बाद श्रावस्ती लोकसभा क्षेत्र में 2009 में पहला लोकसभा चुनाव हुआ। इस चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विनय कुमार पांडेय ने जीत हासिल की। दूसरा चुनाव 2014 में हुआ जिसमें भाजपा के दद्दन मिश्र विजयी रहे। वहीं तीसरा चुनाव 2019 में हुआ जिसमें सपा-बसपा महागठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार राम शिरोमणि वर्मा विजयी रहे।
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इतिहास से जुड़ी है श्रावस्ती लोकसभा

श्रावस्ती पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कर्मभूमि है। धार्मिक लिहाज से भी श्रावस्ती काफी प्रसिद्ध है। यहां हर साल नेपाल, श्रीलंका, जापान, चीन और थाईलैंड से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। यह भगवान बुद्ध की तपोस्थली है। माफिया अतीक अहमद ने भी इस सीट पर किस्मत आजमाई थी लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा था। 2009 में यहां कांग्रेस ने जीत हासिल की। इसके बाद 2014 में भाजपा प्रत्याशी दद्दन मिश्रा अतीक अहमद को हराकर लोकसभा पहुंचे। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें बीएसपी प्रत्याशी राम शिरोमणि वर्मा के सामने हार का सामना करना पड़ा। बीते तीन बार के लोकसभा के चुनाव में श्रावस्ती की जनता ने नए प्रत्याशी का चयन किया है।
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जातीय समीकरण का पेंच
माफिया अतीक अहमद के प्रयागराज से आकर श्रावस्ती में चुनाव लड़ने की सबसे बड़ी वजह यहां के जातीय समीकरण थे। माना जाता है कि श्रावस्ती लोकसभा क्षेत्र में करीब 20% मुसलमान और 15% यादव वोट हैं। इसके अलावा 20 से 25% कुर्मी और 10 से 12% दलित वोट हैं। क्षेत्र में ब्राहमण मतदाता भी अच्छी खासी तादाद में करीब 30% हैं जबकि क्षत्रिय वोटर 5 से 7 प्रतिशत। जातीय समीकरणों के इसी गणित में 2014 में अतीक अहमद उलझ कर रह गया और दद्दन मिश्र ने उसे 85,913 वोटों के अंतर से हरा दिया। उस चुनाव में कुल 9,80,196 (54.82%) वोट पड़े थे जिसमें से दद्दन मिश्र को 3,45,964 (35.30%) और अतीक को 2,60,051 (26.53%) वोट मिले थे। बसपा ने यहां से लालजी वर्मा को उम्मीदवार बनाया था जिन्हें कुल 1,94,890 (19.88%) वोट मिले थे। उस चुनाव में पीईसीपी के उम्मीदवार रिज़वान जहीर भी लड़े थे जिन्हें 1,01,817 (10.39%) वोट मिले थे। वहीं कांग्रेस के विनय कुमार पांडे को 20,006 (2.04%) वोटों से ही संतोष करना पड़ा था।
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श्रावस्ती सीट से ही क्यों उतरे साकेत मिश्रा ?
