सद्भावना आवाज़
अंकिता त्रिपाठी
बलरामपुर।
पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न स्व० अटल बिहारी वाजपई किसी परिचय के मोहताज नहीं थे। वह अपनी सादगी और वाक्कला से ही नहीं अपितु अपने निर्णयों को लेकर भी जनता की पहली पसंद थे। अटल जी ने सन् 1957 में बलरामपुर लोकसभा सीट से पहला चुनाव जीता था। उस वक्त उनको चुनाव लड़ने के लिए आमलोगों ने 40 हजार का चंदा दिया था, जबकि चुनाव में कुल खर्चा 40,650 रुपए का हुआ था। उस वक्त उनके दोस्त और बलरामपुर में जनसंघ के कोषाध्यक्ष रहे दुलीचंद जैन ने उस उधारी को अपने पास से चुकाया था। अटल जी के चुनाव प्रचार के लिए धन की कमी होने के कारण एक टूटी जीप किराए पर ली गई थी जिसके सहारे उन्होंने प्रचार किया था। इस चुनाव के जब नतीजे आए तो अंत में कांग्रेस प्रत्याशी हैदर हुसैन को अटल जी ने 9 हजार 812 वोट से शिकस्त दी। इस प्रकार पहली बार अटल जी लोकसभा पहुंचे। बाद में अटल जी ने मथुरा और लखनऊ लोकसभा सीट से भी चुनाव लड़ा था, लेकिन दोनों जगह वह चुनाव हार गए थे।

आपको बता दें की 1957 के आम चुनाव की घोषणा से पूर्व सीतापुर में जनसंघ की एक अहम बैठक हुई थी। इसमें जनसंघ के कई कद्दावर नेता और पदाधिकारी सम्मिलित हुए। बैठक में पं. दीनदयाल ने बलरामपुर से अटल बिहारी को चुनाव लड़ाने का ऐलान कर दिया। उस समय जनसंघ पार्टी के पास चुनावी खर्चों हेतु पर्याप्त धन नहीं था और न ही अटल जी के पास चुनाव के लिए कोई फंड उपलब्ध था। ऐसे में पं. दीनदयाल उपाध्याय ने चुनाव में मदद करने के लिए कहा। यह कहकर पं. दीनदयाल उपाध्याय ने दुलीचंद की तरफ देखा। क्योंकि, वह उस वक्त जनसंघ पार्टी के कोषाध्यक्ष थे। दुलीचंद ने पं. दीनदयाल से वादा किया और कहा की अटल जी को चंदा जुटाकर चुनाव लड़ाया जायेगा। ऐसे में चुनाव खर्चों की जिम्मेदारी तब पूरी तरह से चंदे पर निर्भर हो गई। दुलीचंद 1957 से 2002 तक जनसंघ और फिर भाजपा के कोषाध्यक्ष रहे हैं। दुलीचंद के सुपुत्र ने अपने पिता के शब्दो को बयां करते हुए उस वक्त का पूरा वाक्य साझा किया है।
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अटल जी को सहयोगियों का मिला भरपूर साथ
महेंद्र जैन का कहना है की सीतापुर में हुई जनसंघ की मीटिंग के कुछ दिनों बाद ही लोकसभा चुनाव का ऐलान हो गया। 24 फरवरी से 9 जून तक करीब 5 महीने के लंबे समय में चुनाव होने थे। बलरामपुर लोकसभा चुनाव हेतु उस साल 25 फरवरी को वोटिंग होनी थी। चुनाव ऐलान के अगले ही दिन अटल जी बलरामपुर आ गए। महेंद्र जैन ने बताया की चुनाव के सिलसिले में अटल जी और पिता जी में काफी देर तक विचार विमर्श हुआ फिर अटल जी चले गए। शाम को पिता दुलीचंद जैन ने अटल जी को रात के खाने हेतु आमंत्रित किया। कहा जाता था की अटल जी को अचार और पूड़ी बेहद प्रिय थी। खाना खाते वक्त अटल जी ने कहा दुलीचंद भाई मेरे पास पैसा नहीं है। बिना पैसों के चुनाव कैसे लड़ा जाएगा, क्योंकि चुनाव में खर्चा तो होगा ही? अटल जी की बात सुनते ही पिता ने उनसे कहा कि आप चुनाव की तैयारी करिए। एक-एक रुपया चंदा इकट्ठा कर लिया जाएगा और उसी चंदे की बदौलत चुनाव लडा जायेगा और जीता भी जायेगा। दुलीचंद का यह आत्मविश्वास और सहयोग पाकर अटल जी उसी समय से चुनाव की तैयारियों में जुट गए।

सर्वप्रथम दुलीचंद ने अटल जी को दिया था ₹500 का चंदा
अटल जी के चुनाव का चंदा नोट करने के लिए एक रजिस्टर बना। इसमें चंदा देने वाले का नाम और चंदे स्वरूप दी गई रकम दर्ज की जाती थी। चंदे की शुरुआत 500 रुपए देकर दुलीचंद ने की। चंदा देने वालों में दूसरा नाम था मदन मोहन तिवारी। उन्होंने 500 रुपए दिए। तीसरा नाम मदन मोहन शर्मा, जो भारत-पाक के बंटवारे के बाद बलरामपुर आकर बस गए। उन्होंने भी 500 रुपए का चंदा दिया। अब चंदे की कुल रकम 1500 रुपए हो गई। चंदे में 1500 रुपए इकट्ठा होने के बाद प्रचार के लिए जीप की तलाश की गई। तब किराए पर महिंद्रा की जीप मिली। उसका इंजन ठीक था, लेकिन बॉडी कई जगह से टूटी थी। इस जीप से अटल जी ने गांव-गांव जाकर प्रचार शुरू किया और इस दौरान दुलीचंद भी उनके साथ रोजाना चुनाव प्रचार में जाते थे क्योंकि स्थानीय होने के नाते दुलीचंद को जानकारी भी थी और उनकी इलाके में पकड़ भी काफी अच्छी थी। हालांकि अटल जी ने चुनाव के लिए खुद कभी चंदे की मांग नहीं की किंतु दुलीचंद जहां भी उनके साथ जाते थे वो अटल जी को जिताकर सांसद भेजने की अपील करते और चंदे के लिए भी निवेदन करते थे।
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अटल के शब्दों ने मोह लिया जनता का मन
सन 1957 के लोकसभा चुनाव के दौरान बलरामपुर के बड़ा परेड ग्राउंड में अटल जी की एक जनसभा कराई गई और इसमें बलरामपुर के अलग अलग इलाकों से हजारों लोग पहुंचे। जनसभा में अटल जी ने इतना जोरदार भाषण दिया की वहां उपस्थित सभी लोग उनसे काफी प्रभावित हो गए और इस जनसभा के बाद चंदे की रकम में बहुत तेजी से इजाफा हुआ तथा शाम बीतते बीतते अटल जी को चंदा देने वाले लोगों की अच्छी खासी भीड़ लग गई। किसी ने 1 रुपए, किसी ने 2 तो किसी ने 5 रुपए दिए। हर रोज एक-एक सिक्के और नोट को गिनकर रखा जाता था। उसे चंदे वाले रजिस्टर में नोट किया जाता था। यही नहीं, गाड़ी के पेट्रोल- डीजल से लेकर बाकी खर्च का हिसाब भी इसी रजिस्टर में नोट किया जाता था। महेंद्र जैन का कहना हैं कि उस वक्त भारतीय जनसंघ के प्रदेश के मुख्य सचेतक प्रताप नारायण तिवारी थे। उन्होंने भी अटल जी के चुनाव हेतु चंदे की अपील लोगो से की, एक- एक व्यापारी से जाकर मिले। चुनाव के अंतिम समय तक लोगो से मिले चंदे की बदौलत कुल 40 हजार रुपए की रकम इकट्ठा हो पाई।
