जनपद के ऐतिहासिक सीताद्वार मंदिर के पुजारी संतोष तिवारी हर साल बिना किसी बाहरी सहयोग के मंदिर प्रांगण में रह रहे साधु संतों को कंबल वितरित करते हैं। इस बार भी ठंड से बचाने के लिए करीब 200 कंबल वितरित किए गए। पुजारी संतोष तिवारी का कहना है कि यह सब मां जगत जननी सीता जी का आशीर्वाद है, जिससे वह यह कार्य कर पाते हैं।श्रावस्ती के विकासखंड इकौना के टड़वा महंत में स्थित सीताद्वार मंदिर का पौराणिक महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब श्रीराम ने माता सीता को वनवास भेजा था, तब लक्ष्मण जी ने उन्हें इस स्थान पर छोड़ दिया था। यही वह स्थान है जहां लक्ष्मण जी ने तीर से सरोवर का निर्माण किया था, जिसे आज सीताद्वार झील के नाम से जाना जाता है। यह 900 एकड़ में फैली हुई झील है। मान्यता है कि यहां माता सीता ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में लव और कुश को जन्म दिया था।
कल्पवृक्ष से पूरी होती है मनोकामनाएं
सीताद्वार मंदिर के पास स्थित एक कल्पवृक्ष के बारे में भी मान्यता है कि इस पेड़ में जो व्यक्ति धागा बांधता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसके बाद वह व्यक्ति धागा खोलकर मंदिर में प्रसाद चढ़ाता है। इसके अतिरिक्त, मान्यता है कि सीताद्वार झील में महीने भर तक स्नान करने से व्यक्ति के सभी प्रकार के चर्म रोग दूर हो जाते हैं।सीताद्वार मंदिर के पुजारी संतोष तिवारी ने बताया कि यह स्थान मां जगत जननी सीता और महर्षि वाल्मीकि के तपोस्थल के रूप में प्रसिद्ध है। वह प्रत्येक वर्ष मंदिर प्रांगण में ठंड से कापते साधु संतों को कंबल वितरित करते हैं। उनका कहना है कि यह उनका व्यक्तिगत कार्य नहीं, बल्कि यह सब मां सीता का आशीर्वाद है, जिससे वह हर साल यह काम कर पाते हैं।