दिल्ली के पॉवर सर्कल में माने जाने वाले कांस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के सचिव (प्रशासन) पद के चुनाव में रविवार को बीजेपी सांसद राजीव प्रताप रूडी ने एक बार फिर जीत दर्ज की. 25 साल से इस पद पर काबिज रूडी को इस बार पार्टी के ही पूर्व सांसद संजीव बालियान ने कड़ी चुनौती दी, लेकिन 26 राउंड की लंबी मतगणना के बाद रूडी ने बढ़त बनाए रखते हुए जीत हासिल की। इस चुनाव में 1200 से ज्यादा सांसद और पूर्व सांसद मतदाता थे, जिनमें देश की शीर्ष राजनीतिक हस्तियां शामिल हैं।
26 राउंड की कांटे की गिनती, आखिरी में साफ हुआ नतीजा
कुल 707 वोट पड़े — 669 वोटिंग के माध्यम से और 38 पोस्टल बैलेट से। 26 राउंड की गिनती के बाद रूडी 354 वोटों के साथ विजयी हुए, जबकि बालियान को 290 वोट मिले। आखिरी राउंड पोस्टल बैलेट का था, जिसने तस्वीर साफ कर दी।
20 साल बाद हुआ सचिव पद का चुनाव
सचिव (प्रशासन) पद के लिए पिछली बार 2004 में मतदान हुआ था। इसके बाद चार बार रूडी निर्विरोध चुने गए। इस बार बालियान के मैदान में उतरने से मुकाबला बेहद हाई-प्रोफाइल हो गया। दोनों नेताओं ने जमकर प्रचार किया और सांसदों ने कई जगह पार्टी लाइन से हटकर वोट डाले।
कांस्टीट्यूशन क्लब का गौरवशाली इतिहास
क्लब की स्थापना फरवरी 1947 में संविधान सभा के सदस्यों के आपसी मेल-जोल और संसदीय जीवन के लिए की गई थी। आजादी के बाद इसे सांसदों का आधिकारिक क्लब माना गया। इसका औपचारिक उद्घाटन 1965 में राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने किया।
यह क्लब देश की राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों का अहम केंद्र है—यहां सभाएं, प्रेस वार्ताएं, सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रदर्शनी और खेल गतिविधियां आयोजित होती हैं।
कौन बन सकता है सदस्य
सदस्यता केवल वर्तमान और पूर्व सांसदों को मिलती है। गवर्निंग काउंसिल के चुनाव में वोटिंग का अधिकार भी इन्हीं के पास है। फिलहाल इसके लगभग 1300 सदस्य हैं, जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी शामिल हैं।
दलीय सीमाओं से परे राजनीति
कांस्टीट्यूशन क्लब का चुनाव अक्सर दलीय राजनीति से अलग होता है। इस बार भी बीजेपी के पैनल में कांग्रेस के दीपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे नेता शामिल रहे। वोटिंग में क्षेत्रीय और व्यक्तिगत समीकरण अधिक हावी रहे।
क्यों है इतना महत्व
कांस्टीट्यूशन क्लब सिर्फ एक भवन नहीं, बल्कि संसद के भीतर और बाहर शक्ति संतुलन, गठजोड़ और रिश्तों का जीवंत प्रतीक है। यहां के चुनाव संसदीय नेटवर्क के असली समीकरणों का पता देते हैं। यानी कौन किसके साथ खड़ा है, किस पर भरोसा है, और भविष्य में किस गठजोड़ की संभावना बन सकती है।