गोंडा।
मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत गांवों में बनी कुछ गौशालायें अब मौत की गौशाला बन गई हैं। शाहपुर गांव में 60 गौवंशों की क्षमता वाले गौ आश्रय केंद्र पर करीब 50 गौवंश मौजूद हैं। मौके पर दो गायें मरी पड़ी थीं, जिन्हें बिना औपचारिक कार्यवाही के दफनाने का कार्य शुरू था। एक गौवंश बीमारी से तड़प रहा था। यहां के चौकीदार वीरेंद्र पाठक ने बताया कि गौ-आश्रय केंद्र में भूसा पर्याप्त है, लेकिन हरे चारे और दाने की व्यवस्था नहीं है। लगातार सिर्फ भूसा पशु खाते नहीं हैं, जिस कारण गौवंश भूख से मर रहे हैं।
पशुओं के बीमार होने पर सूचना के बाद चिकित्सक नहीं आते हैं। मुझे भी कई माह से वेतन नहीं मिला है। समस्याओं के संबंध में कई बार बीडीओ और सचिव को बताया गया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इस संबध में सचिव अनिल कुमार गौतम कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाये। कहा कि इंसान का तो भरोसा ही नहीं है तो जानवरों की क्या ही बात। जानवर हैं तो मरेंगे ही। इसके पहले इस गौ-आश्रय केंद्र में गौवंशों के मरने का मामला प्रकाश में आया था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होने से यहां हालात और बदतर हो चले हैं। रामापुर गांव के गौ-आश्रय केंद्र में 30 गौवंश मौजूद मिले। गौशाला में पशुओं के लिए पीने का पानी उपलब्ध नहीं है, बिजली नहीं है। सोलर पैनल खराब है। यहां भूसा पर्याप्त मात्रा में है, लेकिन दाने और हरे चारे का प्रबंध नहीं है। यहां दो चौकीदार रामजी और प्रह्लाद तैनात हैं। दोनों ने बताया कि उन्हे 8 माह से वेतन नहीं मिला है। चौकीदारों ने बताया कि पिछले एक हफ्ते में 2 गौवंश मरे हैं। जिम्मेदारों की लापरवाही और स्वार्थ सिद्धि की भावना के चलते गौ-आश्रय केंद्रों में अव्यवस्थाओं की भरमार है। जबकि कागजों में व्यवस्था चाक-चौबंद है। आलम यह है कि भूख-प्यास और बीमारी से तड़पकर गौवंश गौशालाओं में दम तोड़ रहे हैं। गौशाला के चारों ओर गहरी खाई जेसीबी से 3 दिन में बनाई गई है। सचिव उज्जवल कुमार से पूछा गया कि गौशाला की क्षमता कितनी है तो उन्होंने बताया कि वह अभी एक कोटा चयन में आये हैं, देखकर बतायेंगे।