सद्भावना आवाज़
गोण्डा।
जिला मुख्यालय गोण्डा से लगभग 35 किलोमीटर और अयोध्या से 52 किलोमीटर की दूरी पर स्थित माँ बाराही देवी का मंदिर, श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण आस्था का स्थान है। इसे श्री आदि शक्तिपीठ माँ वाराही देवी (उत्तरी भवानी) के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र है, जहाँ नवरात्रि के दौरान लाखों भक्त आते हैं। माँ बाराही देवी के मंदिर का इतिहास वाराह पुराण से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर शक्ति की उपासना की, जिसके परिणामस्वरूप माँ बाराही का प्रकट होना हुआ। माँ ने हिरण्याक्ष का वध करके पृथ्वी का उद्धार किया। इसके बाद, माता जी सीधे पाताल में चली गईं। दुर्गा सप्तशती के 11वें अध्याय में भी माता बाराही की स्तुति की गई है, जिससे उनकी महिमा और बढ़ जाती है।
दूध डालने से आँखों की बीमारियाँ होता दूर
मंदिर परिसर में एक विशालकाय बरगद का वृक्ष है, जो अपनी छांव से पूरे मंदिर को ढकता है। यह वृक्ष हजारों वर्षों पुराना माना जाता है और इसके दूध डालने से आँखों की बीमारियाँ दूर हो जाने की मान्यता है। कई भक्त इस वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान लगाते हैं और अपनी समस्याओं का समाधान माँ से मांगते हैं।
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आशा और सकारात्मकता का प्रतीक
माँ बाराही देवी के प्रति भक्तों की गहरी आस्था है। माना जाता है कि जो भी भक्त अपने दुखों को लेकर यहाँ आते हैं, माँ बिना देरी किए उनके कष्टों का हरण कर लेती हैं। कई भक्त अपने अनुभव साझा करते हैं कि किस प्रकार माँ ने उनके जीवन में सुख और शांति वापस लौटाई है। माँ बाराही देवी का मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह विश्वास, आशा और सकारात्मकता का प्रतीक है। यहाँ की आस्था और ऊर्जा भक्तों को प्रेरित करती है, और हर वर्ष अधिक से अधिक लोग इस पवित्र स्थल का दर्शन करने आते हैं। माँ बाराही की कृपा से हर भक्त को सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है।
सुरक्षा के विशेष इंतजाम
हर साल नवरात्रि के दौरान, यहाँ श्रद्धालुओं की संख्या लगभग 5-7 लाख तक पहुँच जाती है। भक्त चारों ओर से आते हैं, और प्रशासन इस दौरान सुरक्षा के विशेष इंतजाम करता है। 24 घंटे की सुरक्षा व्यवस्था के तहत पी.ए.सी. बल और सी.सी.टी.वी. कैमरों के माध्यम से मंदिर परिसर की निगरानी की जाती है। मुख्य अर्चक महन्थ साध्वी रामा भक्तों की पूजा अर्चना में सेवारत रहते हैं।