बलरामपुर। जिले के स्वास्थ्य विभाग में वर्ष 2016 से 2020 के बीच दवाओं और उपकरणों की खरीद-फरोख्त में बड़े पैमाने पर हुए घोटाले की जांच एक बार फिर धीमी पड़ गई है। विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा संयुक्त जिला अस्पताल से बार-बार अभिलेख तलब किए जा रहे हैं, लेकिन हर बार अधूरे दस्तावेज मिलने के कारण जांच में बाधा आ रही है। करोड़ों के इस घोटाले में कई बड़े अधिकारियों के शामिल होने की आशंका जताई जा रही है, लेकिन जांच की रफ्तार धीमी होने से अब तक दोषियों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है।
अधूरे दस्तावेजों के कारण जांच अटकी
एसआईटी ने घोटाले की जांच के सिलसिले में संयुक्त जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) डॉ. राजकुमार वर्मा, वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. ए.के. यादव और लिपिक कोमल श्रीवास्तव को फरवरी 2024 में तीन बार लखनऊ स्थित कार्यालय में तलब किया। हालांकि, हर बार मांगे गए दस्तावेज अधूरे होने के कारण जांच आगे नहीं बढ़ पाई। एसआईटी ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि जल्द से जल्द सभी आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत किए जाएं। सीएमएस डॉ. राजकुमार वर्मा ने बताया कि जो भी दस्तावेज मांगे गए हैं, उन्हें उपलब्ध कराने की प्रक्रिया जारी है।
विजिलेंस टीम की जांच भी ठंडी पड़ी
इस घोटाले की जांच पहले विजिलेंस टीम द्वारा भी की गई थी। अक्टूबर 2022 में विजिलेंस ने जिले के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) से भी दस्तावेज तलब किए थे। 28 नवंबर 2022 को विजिलेंस ने सभी अधीक्षकों और प्रभारी चिकित्साधिकारियों को पत्र जारी कर 16 बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी। इस दौरान दवा खरीद में एक करोड़ 40 लाख रुपये के घोटाले का खुलासा हुआ था, जिसमें तत्कालीन सीएमओ डॉ. घनश्याम सिंह की संलिप्तता सामने आई थी। बावजूद इसके, इस मामले में अब तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है।
फर्जी भुगतान और गुमराह करने का मामला भी उजागर
जांच के दौरान सामने आया कि 24 और 25 मई 2018 को कोषागार से बिना किसी वास्तविक आकस्मिकता के 1,41,77,865 रुपये का भुगतान विभिन्न फर्मों को किया गया था। यह भुगतान तत्कालीन सीएमएस डॉ. सत्यदेव और लेखा कार्यालय के लिपिक ने किया था। इस घोटाले से जुड़ी शिकायत संयुक्त जिला चिकित्सालय औरैया के सीएमएस डॉ. राजेश मोहन गुप्ता ने सतर्कता अधिष्ठान अयोध्या के पुलिस अधीक्षक से की थी। शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया था कि 2018-19 में कार्यरत तत्कालीन सीएमएस डॉ. घनश्याम सिंह का नाम जानबूझकर छिपाया गया। उन्होंने घास कटाई, चादर धुलाई और रंगाई-पुताई के बिलों का नियम विरुद्ध भुगतान किया था। तीन वर्षों के भीतर करीब 70 लाख रुपये का गलत तरीके से भुगतान किया गया था।
प्रशासन की लापरवाही से बढ़ रही अनियमितताएं
घोटाले की जांच के बावजूद दोषियों पर कार्रवाई न होने से अस्पताल प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी लगातार जांच में बाधा डाल रहे हैं और अधूरे दस्तावेज पेश कर रहे हैं। इससे जांच की गति प्रभावित हो रही है और घोटाले में संलिप्त लोगों को बचाने की कोशिश की जा रही है।