उत्तर प्रदेश के नौ विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों ने सियासी समीकरणों को स्पष्ट कर दिया है। भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने 7 सीटों पर जीत हासिल कर अपनी पकड़ मजबूत की, जबकि समाजवादी पार्टी (सपा) ने अपनी पारंपरिक दो सीटों—करहल और सीसामऊ पर जीत दर्ज की। इन नतीजों ने भाजपा के विकास आधारित मॉडल और सपा के जातीय समीकरणों की ताकत को फिर से परखा है।
भाजपा का विकास मॉडल हुआ सफल
भाजपा ने इस चुनाव में अपने ‘डबल इंजन’ सरकार के विकास मॉडल को सामने रखा। उज्ज्वला योजना, किसान सम्मान निधि, और मुफ्त राशन जैसी योजनाओं ने गरीब और पिछड़े वर्गों में भाजपा की स्वीकार्यता को और बढ़ाया। इसके अलावा, कानून-व्यवस्था के मुद्दे को भी जनता ने अहमियत दी।मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने परिणामों पर कहा, “यह जीत विकास, राष्ट्रवाद, और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व पर जनता के भरोसे की मुहर है।”
कुंदरकी: 31 साल बाद भाजपा का कमाल
मुरादाबाद की कुंदरकी सीट पर 60% मुस्लिम आबादी के बावजूद भाजपा उम्मीदवार रामवीर सिंह ने सपा के हाजी रिजवान को 1.42 लाख वोटों से हराया। यह जीत भाजपा के लिए ऐतिहासिक है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा ने हिंदू वोट बैंक को एकजुट कर और स्थानीय विकास के मुद्दे उठाकर यह जीत हासिल की।योगी आदित्यनाथ ने इस जीत को “राष्ट्रवाद और सामाजिक समरसता की विजय” बताया। उन्होंने कहा, “कुंदरकी ने दिखा दिया कि जनता अब तुष्टिकरण की राजनीति को नकार रही है।”
सपा की जातीय राजनीति सीमित
सपा ने करहल और सीसामऊ सीट पर अपनी पकड़ बनाए रखी, लेकिन अन्य सीटों पर उसकी रणनीति विफल रही। मैनपुरी की करहल सीट से तेज प्रताप यादव ने 14,704 वोटों से जीत हासिल की, जबकि कानपुर की सीसामऊ सीट पर नसीम सोलंकी ने भाजपा के सुरेश अवस्थी को 8,564 वोटों से हराया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा, “यह परिणाम हमारे लिए सबक हैं। हम पीडीए (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) के साथ मिलकर भविष्य की रणनीति बनाएंगे।”