उत्तर प्रदेश ।
एक विवाह का आयोजन किया गया ,ये विवाह पूरे विधि विधान और वैदिक तरीके से किया गया। शादी की सारी रस्में निभाई गई। मगर इस शादी की अनोखी और हैरान कर देने वाली बात यह थी कि इस विवाह में न दूल्हा था और न ही , इस विवाह के बाकायदा कार्ड भी छपवाए गए और लोगों को दिए गए। यह अनोखा और अद्भुत विवाह किससे बीच हुआ। असल ये विवाह गांव में प्यास बुझाने के लिए लगाए गए कुएं और बगिया के बीच हुआ.कुएं और बगिया की ये अनोखी शादी बहराइच जिले के कैसरगंज क्षेत्र के कड़सर बिटौरा गांव में हुई. इस शादी का आयोजन गांव के ही राठौर परिवार ने करवाया. राठौर परिवार की 85 साल की बुजुर्ग दादी की इच्छा पर करवाया
कुएं और बगिया की ये अनोखी शादी बहराइच जिले के कैसरगंज क्षेत्र के कड़सर बिटौरा गांव में हुई. इस शादी का आयोजन गांव के ही राठौर परिवार ने करवाया. इस परिवार ने गांव में प्यास बुझाने के लिए बनाए गए कुएं और फल-फूल के साथ ऑक्सीजन देने वाले पेड़ पौधों की बाग (बगिया) की शादी का आयोजन किया. इस विवाह में बाराती और घराती भी थे. बता दें कि ये विवाह राठौर परिवार की 85 साल की बुजुर्ग दादी की इच्छा पर करवाया गया।
सूत्रानुसार गांव के अखिलेश सिंह राठौर की 85 वर्षीय बुजुर्ग मां किशोरी देवी की इच्छा पर इस अनोखी शादी के सारे इंतजाम किए गए. इस शादी को भव्य तरह से आयोजित किया गया. शादी में लोगों को न्योता देने के लिए बाकायदा विवाह के कार्ड छपवाए गए।
शादी के कार्ड में दूल्हा-दुल्हन की जगह हृदयकणिका बगिया संग हृदयांश कुआं लिखा था। ये विवाह 13 मार्च को हुआ और इस विवाह में दूर-दराज के लोगों को भी आमंत्रित किया गया।
ये शादी भव्य तरीके से हुई। कुएं को दूल्हा मानकर प्रतीक के तौर पर मानव शक्ल में लकड़ी के टुकड़े को दूल्हे जैसा सजाया गया। उस पर सेहरा बांधा गया और उसे उठाकर लोगों ने गाड़ी में बिठाया. फिर गाड़ियों की लंबी लाइन से कुएं की बारात निकाली गई। कुएं की बारात में भी भारी संख्या में लोग रहे। बैंड बाजे पर बारातियों ने जमकर डांस किया।
इस बारात में बारातियो में तहसील कैसरगंज के एसडीएम महेश कैथल भी शामिल हो बने बाराती , इस दौरान ब्लॉक प्रमुख संदीप सिंह विसेन समेत कई गांवों के ग्राम प्रधान बाराती बने। जब बारात गांव के बाग (बगिया) में पहुंची तो वहां सैकड़ों पुरुष व महिलाएं बारातियों का स्वागत करने के लिए खड़े थे
इस दौरान बारातियों का स्वागत किया गया और उन्हें जलपान करवाया गया। इसके बाद दूल्हे राजा बने कुएं के प्रतीक का पूरे विधि विधान से द्वारपूजन किया गया। इस दौरान महिलाओं ने मंगल गीत गाए।फिर गांव के मंदिर के पास ही यज्ञ किया गया।गांव की महिलाओं और पुरुषों ने यज्ञ में भाग लिया और प्रतीक के तौर पर कुएं और बगिया का विवाह हुआ।
विवाह के दूसरे दिन विदाई का कार्यक्रम रखा गया। इस दौरान विदाई की रस्म भी पूरे विधि विधान से अदा की गई। इस दौरान भोज का भी आयोजन किया गया, जिसमें सभी ने खाना खाया. इस तरह से प्रकृति और पर्यावरण को समर्पित एक अनोखी शादी का समापन हुआ ।इस विवाह के आयोजक अखिलेश सिंह राठौर और राकेश सिंह राठौर का कहना है कि उनकी मां किशोरी देवी के मन में इच्छा थी की गांव में कुएं और बगिया का विवाह हो। ये भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहे हैं और कोई भी शादी विवाह इनके पूजन किए बिना पूर्ण नहीं माना जाता।इसलिए उनकी इच्छा पर ही कुएं और बगिया का विवाह करवाया गया। इस कार्यक्रम में कैसरगंज क्षेत्र के एसडीएम महेश कैथल भी शामिल हुए थे।उन्होंने बताया की ग्रामीणों के आमंत्रण पर वो भी इस विवाह में शामिल हुए जिस तरीके से लोग अपने बेटों और बेटियों की भव्य तरह से शादी करते हैं, ठीक वैसा ही आयोजन यहां भी देखने को मिला है।यह भारतीय संस्कृति की विशेषता है, जहां प्रकृति और पर्यावरण के प्रति मानव में श्रद्धा व विश्वास व्याप्त है.इस परिवार ने गांव में प्यास बुझाने के लिए बनाए गए कुएं और फल-फूल के साथ ऑक्सीजन देने वाले पेड़ पौधों की बाग (बगिया) की शादी का आयोजन किया. इस विवाह में बाराती और घराती भी थे. इस विवाह में आसपास के 40 से 45 गांवों के लगभग 1500 लोगों के बीच आमंत्रण पत्र बांटे गए थे सभी ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।