भारत में पहली बार हाथी की गणना शुरू की गई है। हाथियों की गणना करने के लिए बहराइच के कतर्नियाघाट में छह सदस्यीय टीम पहुंच चुकी है। हाथियों के गोबर से हाथी की गणना की जाएगी। हाथी की गणना के लिए तीन स्तरीय पद्धति अपनाई गई है। प्रोजेक्ट एलिफैंट का यह कार्यक्रम भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून और पर्यावरण मंत्रालय निर्देशन में 20 हाथी बाहुल्य इलाकों में शुरू किया गया है, जो डेढ़ माह तक चलेगा।
6 सदस्यीय टीम
इसके बाद हर हाथी की एक प्रोफ़ाइल तैयार होगी व हर हाथी को एक कोड नम्बर दिया जाएगा। इसकी पूरी रिपोर्ट पर्यावरण मंत्रालय को भेज दी जाएगी, जो बाद में देश को हाथी की संख्या बताएगी। प्रोजेक्ट एलिफैंट के तहत अब जिस प्रकार से गणना हो रही है, उसमें तीन स्तरीय पैमाना अपनाने के कारण काफी सटीकता की उम्मीद की जा रही है। ऐसा करने की ज़रूरत इसलिए भी पड़ी, क्योंकि IUCN गाइड लाइन के तहत शेड्यूल वन का यह प्राणी इस समय संकट की स्थिति में है।हाथी की सही-सही संख्या जानने के लिए एक 6 सदस्यीय टीम बहराइच के कतर्नियाघाट भी आई है। जिसमें ध्रुव जैन, महाजन रश्मि दीपक, निवेदिता बसु, अश्वनी ममगेन, सृष्टि जोशी व नाका लाकरा इन सभी लोंगों ने कतर्नियाघाट के निशानगाड़ा, मुर्तिहा, धर्मापुर, सुजौली व प्रॉपर कतर्नियाघाट के 200 वर्ग किलोमीटर में अपना काम शुरु कर दिया है।
वन्यजीव संस्थान के शोध
प्रभागीय वनाधिकारी कतर्नियाघाट आकाशदीप बधावन ने बताया कि जो 6 सदस्य टीम आई है, उसमें सभी भारतीय वन्यजीव संस्थान के शोध छात्र हैं, जो बहुत ही वैज्ञानिक पद्धतियों का इस्तेमाल करते हुए इस कार्य को अन्जाम दे रहे हैं। उनकी सुरक्षा और सहयोग के लिए वन विभाग की टीम भी उनके साथ लगाई है।न्यूज़ स्वम सेवी संस्था के अभिषेक ने बताया कि इस प्रोजेक्ट में हाथी की गणना के दौरान कई बिंदुओं पर ध्यान दिया जाएगा। यह देखा जाएगा कि हाथी के आने जाने का रास्ता क्या है। जैसे टाइगर को धारियों से पहचाना जा सकता है, वैसे ही हाथी को दूसरे हाथी से अलग करके देखा जा सकता है। उसका मूल्यांकन करने के लिए बहुत चीज़े होती हैं। जैसे उसके दांत हो गए, उसके कान हो गए। यह सब एक दूसरे से भिन्न होते हैं। बदन पर कोई दाग हो गया, कूबड़ हो गई, पूंछ की लम्बाई हो गई, बाल भी अलग-अलग हाथी में अलग होते हैं। थर्मोस्टेट कैमरे जब दोनों तरफ से फोटो लेते हैं, उसमें भी फर्क पता चल जाता है। इस तरह हर हाथी की अपनी एक अलग पहचान होती।डीएफओ आकाशदीप ने बताया कि हाथी की अलग-अलग भिन्नताओं और उसके गोबर की डीएनए परीक्षण से हम उसकी संख्या को आसानी से पता लगा सकते हैं। निश्चित ही यह कार्य पूरा होने पर हम हाथियों की संख्या जान जाएंगे तो उनके संरक्षण के लिए पहले से बेहतर कार्य कर सकेंगे।