शहर में ठंड का प्रकोप शुरू हो चुका है, लेकिन जरूरतमंदों के लिए राहत का एकमात्र सहारा – रैन बसेरे, अब भी ताले जमे खड़े हैं। जहां सरकार ने आधुनिक रैन बसेरे बनाने और गरीबों को सर्दी से बचाने के दावे किए थे, वहीं जिले में असलियत इसके उलट है। अंबेडकर तिराहे पर बने रैन बसेरे में ताले लटके हैं, और ठंड से कांपते लोग सड़कों पर सोने को मजबूर हैं।
सरकारी दावे और जमीनी हकीकत
नगर पालिका प्रशासन द्वारा रैन बसेरों को चारपाई, गद्दे, रजाई, तकिया और मच्छररोधी दवाओं से लैस करने का दावा किया गया था। लेकिन हकीकत यह है कि सर्दियों की शुरुआत के बावजूद रैन बसेरा न तो चालू हुआ है और न ही जरूरतमंदों को राहत मिल रही है। खुले आसमान के नीचे बिना कंबल के रातें बिताने वालों की स्थिति सवाल खड़े करती है – आखिर इनकी सुध कौन लेगा?
बलरामपुर/ठंड में रैन बसेरों की दुर्दशा
कौन लेगा जिम्मेदारी?
रैन बसेरे के ताले क्यों नहीं खुले? ठंड में बेसहारा लोगों का हाल देख क्या जिम्मेदारों को ठंड का एहसास नहीं होता? प्रशासन की ओर से रैन बसेरे में सुविधाओं का दावा किया गया था, लेकिन यहां जरूरतमंदों के लिए कोई इंतजाम नहीं है। जिन लोगों को इस समय छत और राहत की जरूरत है, उन्हें सड़कों पर सोने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
आम जनता की पीड़ा
रैन बसेरों की दुर्दशा से परेशान लोग अब सवाल उठा रहे हैं कि उनकी राहत के इंतजाम कब होंगे। एक स्थानीय निवासी ने कहा, “ठंड हर साल आती है, लेकिन प्रशासन को कभी पहले से तैयारी करने की फुर्सत नहीं होती। अगर रैन बसेरे चालू होते तो कई गरीबों की जान बच सकती थी।”
प्रशासन की चुप्पी, जनता की समस्या
बलरामपुर जैसे शहर में ठंड से बचने के लिए रैन बसेरों का होना अत्यावश्यक है। लेकिन नगर पालिका और जिला प्रशासन की चुप्पी ने गरीबों के सामने गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। क्या प्रशासन इंतजार कर रहा है कि ठंड से किसी की जान जाए, तब ये ताले खुलेंगे?
क्या होंगे ठंड से राहत के इंतजाम?
अब सवाल उठता है कि सरकार और प्रशासन कब जागेगा? क्या रैन बसेरों के दरवाजे तब खुलेंगे जब ठंड अपने चरम पर होगी? क्या बेसहारा लोगों को सर्दी से बचाने की जिम्मेदारी कोई उठाएगा? या यह समस्या हर साल की तरह इस बार भी सिर्फ वादों और कागजों तक सीमित रहेगी?
