अंकिता त्रिपाठी
बलरामपुर। लोकसभा चुनाव में हार के बाद भाजपा ने जिले की सियासी बिसात फिर से बिछानी शुरू कर दी है। जातीय समीकरण को साधते हुए भाजपा ने बलरामपुर में पहली बार ब्राह्मण नेता रवि मिश्रा को जिला अध्यक्ष बनाया है। 2024 में बलरामपुर सीट गंवाने के पीछे ब्राह्मण समाज की नाराजगी को अहम कारण माना गया था। यही वजह है कि पार्टी अब 2027 विधानसभा चुनाव से पहले जातीय संतुलन बैठाने में जुट गई है। रविवार को अटल भवन सभागार में हुई बैठक में यह ऐलान किया गया। जिले की कमान संभालने के लिए 19 दावेदार थे, लेकिन अंततः भाजपा ने ब्राह्मण चेहरा आगे किया। 1997 में बलरामपुर को जिला बनाए जाने के बाद पहली बार किसी ब्राह्मण नेता को जिला अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है।
बलरामपुर में भाजपा संगठन में ‘ब्राह्मण कार्ड’
लोकसभा चुनाव में हार से सबक लेते हुए भाजपा ने बलरामपुर में बड़ा बदलाव किया है। पहली बार जिले की कमान ब्राह्मण नेता रवि मिश्रा को सौंपी गई है। 2024 में साकेत मिश्रा की हार के पीछे ब्राह्मणों की नाराजगी को बड़ी वजह माना गया था। ऐसे में भाजपा ने 2027 विधानसभा चुनाव से पहले जातीय संतुलन बैठाने की रणनीति अपनाई है।
संगठन में बड़ा फेरबदल, रवि मिश्रा बने जिला अध्यक्ष, जातीय संतुलन साधने की कोशिश
भाजपा को एहसास हुआ कि ब्राह्मण समाज पार्टी से दूर जा रहा था, जिसे रोकने के लिए यह कदम उठाया गया। सपा-कांग्रेस ने ब्राह्मण-ओबीसी गठबंधन मजबूत कर भाजपा के वोटबैंक में सेंध लगा दी थी। भाजपा अब ठाकुर-ओबीसी समीकरण से आगे बढ़कर ब्राह्मणों को साधने में जुटी है।
रवि मिश्रा को क्यों मिली कमान?
रवि मिश्रा 2017 से भाजपा में सक्रिय हैं, 2022 में गैंसड़ी विधानसभा संयोजक रह चुके हैं। वह तुलसीपुर विधायक कैलाश नाथ शुक्ला के दामाद हैं, जिससे संगठन में उनकी मजबूत पकड़ मानी जा रही है।
भाजपा की ‘डैमेज कंट्रोल’ रणनीति, सपा-कांग्रेस से मिली चुनौती?
- 2024 में साकेत मिश्रा की हार के बाद भाजपा को अहसास हुआ कि ब्राह्मण समाज में असंतोष है।
- सपा-कांग्रेस ने ब्राह्मण-ओबीसी गठबंधन मजबूत कर भाजपा के वोटबैंक में सेंध लगा दी।
- ठाकुर-ओबीसी समीकरण के भरोसे चुनाव लड़ना महंगा पड़ा, अब भाजपा संतुलन साध रही है।
कौन हैं रवि मिश्रा, जिन्हें मिली बड़ी जिम्मेदारी?
- 2017 से भाजपा में सक्रिय, संगठन में मजबूत पकड़।
- 2022 में गैंसड़ी विधानसभा संयोजक रहे।
- पूर्व प्रधान रह चुके हैं, 15 साल से राजनीति में सक्रिय।
- तुलसीपुर विधायक कैलाश नाथ शुक्ला के दामाद, ब्राह्मण समाज में अच्छी पकड़।
भाजपा का 2027 विधानसभा चुनाव का ‘मास्टरप्लान’
- ब्राह्मण-ठाकुर समीकरण को फिर से मजबूत करना।
- सपा-कांग्रेस के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस।
- संभावना है कि भाजपा विधानसभा में ब्राह्मणों को ज्यादा टिकट देगी।
भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौतियां?
- ब्राह्मणों को जोड़ते हुए ओबीसी-दलित वोटबैंक को भी संभालना।
- स्थानीय स्तर पर गुटबाजी रोकना, क्योंकि कई दावेदार नाराज हो सकते हैं।
- सपा और कांग्रेस इसे जातिवादी राजनीति का मुद्दा बना सकते हैं।
क्या भाजपा की नई रणनीति 2027 में काम आएगी?
भाजपा ने संगठन की कमान ब्राह्मण नेता को देकर बड़ा दांव खेला है, लेकिन सिर्फ चेहरा बदलने से समीकरण सुधरेंगे या नहीं, यह 2027 में ही साफ होगा। क्या यह फैसला ब्राह्मण समाज की नाराजगी दूर कर पाएगा या सपा-कांग्रेस इसे और भुनाएंगे? भाजपा के इस जातीय दांव का असर 2027 विधानसभा चुनाव में ही दिखेगा!